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Mahayagy ka purskar महायज्ञ का पुरस्कार Sahity Sagar ICSE

Mahayagy ka purskarl महायज्ञ का पुरस्कार l Q Ans /Sahity Sagar/ICSE

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कहानी का उद्देश्य
कहानी महायज्ञ का पुरस्कार का उद्देश्य यह है कि अपनी इच्छाओं या मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, वास्तविक यज्ञ नहीं हो सकता बल्कि नि:स्वार्थ और निष्काम भाव से किया गया कर्म ही सच्चा महायज्ञ कहलाता है। स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की सहायता करना ही मानव-धर्म है। इसी का उदाहरण एक गरीब सेठ इस कहानी में अपने आचरण द्वारा प्रस्तुत करता है । 

शीर्षक की सार्थकता 
कहानी का शीर्षक 'महायज्ञ का पुरस्कार' इसके घटनाक्रम के अनुसार उचित है। 
  इस कहानी में एक गरीब सेठ अपना भोजन एक भूखे कुत्ते को दे देता है जिसे वह महायज्ञ नहीं मानता बल्कि मानवोचित कार्य कहता है।वह धन्ना सेठ से इस मानवीय कर्म के बदले में पैसे नहीं लेता। 
अंत में ईश्वर की कृपा-दृष्टि से सेठ जी के द्वारा किए गए नि:स्वार्थ कर्म का फल उन्हें घर के तहखाने में मौजूद हीरे-जवाहरात के रूप में मिला। जोकि उनके महायज्ञ का पुरस्कार था । यही घटनाक्रम इस शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करता है।

शब्द अर्थ 
पौ फटना - सूर्योदय Sunrise
आद्‌योपांत - शुरू से अंत तक from beginning to the end
कोस - लगभग दो मील के बराबर नाप 
तहखाना - ज़मीन के नीचे बना कमरा
प्रथा - रिवाज़ ritual/tradition
बेबस - विवश / Helpless
धर्मपरायण - धर्म का पालन करने वाला 
विस्मित - हैरान Surprise
कृतज्ञता - उपकार मानना Obliged 
उल्लसित - प्रसन्न Happy 
विपदग्रस्त - मुसीबत में फँसे in trouble

प्रश्न : उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी?
उन दिनों एक कथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल को खरीदा -बेचा जा सकता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता।

प्रश्न : गरीब सेठ की पत्नी /सेठानी ने एक यज्ञ बेचने का सुझाव क्यों दिया?
ऐसा सुझाव इसलिए दिया क्योंकि वे आर्थिक तंगी से परेशान थे और उन दिनों यज्ञों के फल को खरीदा -बेचा जा सकता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता।सम्पन्नता के समय उन्होंने बहुत से यज्ञ किये थे और उन्हें आशा थी कि उनको कुछ मदद मिल जायेगी ।

प्रश्न :भूखे कुत्ते को रोटियाँ खिलाने को सेठ ने महायज्ञ क्यों नहीं माना? 
उत्तर : सेठ बहुत ही विनम्र, धर्मपरायण तथा उदार थे। स्वयं भूखे रहकर भी एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दीं। धन्ना सेठ की त्रिलोक-ज्ञाता पत्नी ने सेठ के इस कृत्य को महाज्ञय की संज्ञा दी, तो सेठ ने इसे केवल कर्त्तव्य-भावना का नाम दिया।क्योंकि गरीब होने पर भी उन्होंने अपने कर्त्तव्य को हमेशा सर्वोपरि माना और उसी के अनुरूप आचरण दिखाया था । सेठ का मानना था कि भूखे कुत्ते को रोटी खिलाना मानव का कर्त्तव्य है।

प्रश्न : कहानी के अनुसार महायज्ञ क्या था? इसके बदले में सेठ को क्या मिला?
उत्तर :कहानी के अनुसार लेखक मानते हैं कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, वास्तविक यज्ञ नहीं हो सकता बल्कि बिना किसी स्वार्थ या फल की चिंता करते हुए किया गया कार्य ही सच्चा महायज्ञ कहलाता है। स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की सहायता करना ही मानव-धर्म है। सेठ ने खुद भूखे रहकर भूखे कुत्ते को रोटी खिलाई । उन्होंने अपने कर्म को मानवीय-कर्त्तव्य समझा और उसे धन्ना सेठ को नहीं बेचा।
बाद में ईश्वर की कृपा से सेठ को अपने घर में एक तहखाने में हीरे-जवाहरात मिले। यही सेठ के 'महायज्ञ का पुरस्कार' था। 
सेठ का चरित्र चित्रण /लेखक ने धनी सेठ की किन – किन विशेषताओं का वर्णन किया है
सेठजी कहानी के मुख्य पात्र हैं, वे अत्यंत विनम्र ,धर्म परायण और उदार प्रवृत्ति के हैं।
 वे बहुत ही परोपकारी और त्यागी हैं ,मानवीय धर्म-कर्म को समझते हैं और उसका पालन करते हैं । 
वे निस्वार्थी हैं ।

सेठ की पत्नी /सेठानी का चरित्र चित्रण 
वह एक पतिव्रता स्त्री है और सुख-दुख में पति का साथ देती है।  
वह मधुर बोलने वाली , धर्म-परायण, बुद्धिमति, समझदार और दूरदर्शी है। 
वह संतोषी और धैर्यवान भी है ।

धन्ना सेठ की सेठानी के विषय में क्या अफवाहें फैली थी? 
धन्ना सेठ की सेठानी को दिव्य शक्तियाँ प्राप्त थी, जिससे वे लोगों की बात जान लेती थी। 

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