दो कलाकार - मन्नू भंडारी (प्रश्नोत्तर) ICSE Hindi
(दो कलाकार - दूरदर्शन के सौजन्य से)
कठिन शब्दार्थ
गलतफ़हमी - गलत समझ लेना
प्रतीक - चिह्न
ढिंढोरा पीटना - सबसे कहते फिरना
नवाबी चलाना - अधिकार जताना
रोब खाना - दबना
हाड़ तोड़कर परिश्रम करना - कड़ी मेहनत करना
तूली - कूँची ( Brush)
शोहरत - प्रसिद्धि
हुनर - कौशल
तमन्ना - इच्छा
निरक्षर - अनपढ़
लोहा मानना - प्रभुत्व स्वीकार करना
फ़रमाइश - माँग
प्रदर्शनी - नुमाइश
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(1)
लौटी तो देखा तीन-चार बच्चे उसके कमरे के दरवाज़े पर खड़े उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आते ही बोली, "आ गए, बच्चो! चलो, मैं अभी आई।"
प्रश्न
(i) कौन, कहाँ जाने वाली है और क्यों?
(ii) चित्रा कौन है? अरुणा ने चित्रा के बनाए चित्र को देखकर क्या कहा?
(iii) अरुणा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(iv) चित्रा चित्रकला से जुड़ी है और अरुणा समाज-सेवा से। क्या इस दृष्टि से अरुणा को भी कलाकार माना जा सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर
(i) अरुणा, जो कहानी की मुख्य पात्रा है, होस्टल के बाहर मैदान में गरीब चौकीदारों, नौकरों और चपरासियों के बच्चों को पढ़ाने जाने वाली थी। वह एक प्रतिबद्ध समाज-सेविका है।
(ii) चित्रा अरुणा की घनिष्ठ मित्र और एक अच्छी चित्रकार है। कहानी की शुरुआत में जब चित्रा ने अरुणा को नींद से जगाकर अपनी बनाई पेंटिंग दिखाई तो अरुणा ने कहा कि वह चित्र किधर से देखे क्योंकि उसे चित्रा के द्वारा बनाए गए चित्र समझ में नहीं आते थे। उसने चित्रा से आगे कहा कि वह जब भी कोई चित्र बनाए तो उसका नाम जरूर लिख दिया करे ताकि यह समझने में गलती न हो कि आखिर चित्र में कौन-सा जीव है।
(iii) अरुणा कहानी की प्रमुख पात्रा है और चित्रा की घनिष्ठ मित्र है। वह होस्टल में रहकर पढ़ाई करती है किन्तु उसका मन समाज-सेवा में ज्यादा लगता है। वह हर समय समाज-सेवा में व्यस्त रहती है। वह गरीब बच्चों को पढ़ाना अपना कर्त्तव्य समझती है। वह भावुक, संवेदनशील, दयालु, दूसरों के दुख को अपना दुख समझने वाली,दूसरों की समस्या व संकट में स्वयं भुला देने वाली लड़की है। अरुणा एक भिखारिन की मृत्यु होने पर उसके अनाथ बच्चों को अपनाकर उन्हें अपनी ममता की छाया प्रदान करती है।
(iv) चित्रा चित्रकार है। अरुणा समाज सेविका है। वह समाज के छोटे-बड़े सभी लोगों का जीवन सँवारने का प्रयत्न कर रही है। चित्रा मनुष्य और समाज के बाहरी रूप को कागज के पन्नों पर उकेरने का कलात्मक कार्य करती ह। अरुणा मनुष्य और समाज की आत्मा में निहित संवेदनाओं को सँवारने का लोकहित कार्य करती है। एक दुखी मनुष्य का चित्र बनाने से बड़ी कला मनुष्यों के जीवन को सँवारने में है। मेरे अनुसार अरुणा मानव-जीवन की कलाकार है। इस दृष्टि से अरुणा भी एक श्रेष्ठ कलाकार है।
(2)
"क्या....!" चित्रा की आँखें विस्मय से फैली रह गईं।
"क्या सोच रही है चित्रा?"
"कुछ नहीं...मैं...सोच रही थी कि..." पर शब्द शायद उसके विचारों में खो गए।
प्रश्न
(i) ऐसी क्या बात हुई जिसे सुनकर चित्रा की आँखें फैली की फैली रह गईं? समझाकर लिखिए।
(ii) किस तस्वीर को प्रथम पुरस्कार व प्रसिद्धि मिली थी? वह किस जगह का चित्र था?
(iii) अरुणा के किन शब्दों से चित्रा सोच में पड़ गई और अपने ही विचारों में खो गई? चित्रा की सोच के आधार पर अपने विचार लिखिए।
(iv) कला को सत्य, शिव और सुन्दर होना चाहिए - कहानी के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर
(i) विदेश जाकर चित्रा मशहूर चित्रकार बन गई। अख़बारों में भिखारिन और दो अनाथ बच्चों के उस चित्र की बहुत प्रशंसा हुई जिसने चित्रा को शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचा दिया। जब दिल्ली में चित्रा की चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तब वहाँ अरुणा भी उस मृत भिखारिन के दो बच्चों के साथ पहुँची जिसे अरुणा ने गोद ले लिया था। चित्रा के पूछने पर जब अरुणा ने बताया कि ये दोनों बच्चे उसी भिखारिन के हैं जिसे देखकर चित्रा ने रफ़ स्केच बनाया था तब चित्रा की आँखें फैली की फैली रह गई।
(ii) विदेश जाकर चित्रा कला उन्न्ति के शिखर पर पहुँच गई। विदेश में उसकी कला बहुत सराही गई। विशेषकर भिखारिन व उसके दोनों अनाथ बच्चों की तस्वीर की प्रशंसा से अनेक समाचार-पत्रों के पन्ने रंग गए थे। अनेक प्रतियोगिताओं में चित्रा का "अनाथ" शीर्षकवाला चित्र प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुका था। वह चित्र,चित्रा ने अपने होस्टाल के बाहर गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे बनाई थी, जहाँ एक भिखारिन अपने दो बच्चों को अनाथ छोड़कर मर गई थी।
(iii) चित्र-प्रदर्शनी के समय जब चित्रा ने अरुणा के साथ आए दोनों बच्चों के बारे में पूछा कि वे किसके हैं तब अरुणा ने बताया कि वे दोनों बच्चे उसके हैं। चित्रा ने इसे अरुणा का मज़ाक समझा। जब बच्चे पिता के साथ विदा हुए तब चित्रा ने दोबारा पूछा कि ये प्यारे बच्चे किसके हैं। इस पर अरुणा ने "अनाथ" शीर्षक वाली तस्वीर के दोनों बच्चों पर उँगली रखकर कहा कि ये ही वे दोनों बच्चे हैं। यह सुनकर चित्रा के पैरों तले की धरती खिसक गई। वह स्तब्ध रह गई। वह विचारों में खो गई कि जीवन का उद्देश्य क्या है और उसकी सार्थकता किसमें हैं। उसने पहचाना कि जो शोहरत उसने पायी है, वह अरुणा के नि:स्वार्थ सेवाभाव के आगे कितनी फीकी है।
(iv) मानव जीवन में कला और संस्कृति का बहुत महत्त्व है। कला के विभिन्न रूपों के माध्यम से मानव-जीवन में आदर्श और यथार्थ का मिलन संभव होता है। कला के विभिन्न रूपों की सार्थकता सत्यम् शिवम् सुन्दरम् में ही निहित है। संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला आदि कला के कई रूप हैं जिसमें जीवन के सत्य को मानव कल्याण अर्थात् शिवम के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए तभी वह कला सुन्दर मानी जाएगी और उसके कलाकार को समुचित सम्मान प्राप्त होगा। प्रस्तुत कहानी में चित्रा ने मृत भिखारिन और उसके दो अनाथ बच्चों की तस्वीर बनाकर जीवन के कटु सत्य को तो अभिव्यक्त कर दिया किन्तु उन बच्चों की अनदेखी कर उसने कला के सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्से शिवम् की अवहेलना कर दी। अत: चित्रा को प्रसिद्धि तो प्राप्त हो गई लेकिन वह श्रेष्ठ कलाकार नहीं बन सकी।
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