स्वर्ग बना सकते हैं कविता का केन्द्रीय भाव / मूल भाव
स्वर्ग बना सकते है, कविता श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कविता है . प्रस्तुत कविता में उन्होंने अपने देश की तुलना स्वर्ग से की है. कवि का मानना है कि हम सभी का जन्म समान रूप से हुआ है . ईश्वर ने हमें समान रूप से बनाया है और साथ यह धरती ,हवा,प्रकाश आदि का उपयोग करने के लिए दिया है, परन्तु कुछ मनुष्यों से लोभ वश उन पर कब्ज़ा जमा लिया है और समाज में अन्याय को जन्म दिया है . अतः हमारे देश में किसी प्रकार भाषा, धर्म, जाति, रंग आदि के नाम पर कोई भेद-भाव न हो. सभी देशवासियों को न्यायोचित सुख मिले . सभी का समान विकास हो किसी प्रकार का संघर्ष न हो. कवि का मानना है कि समता और प्रेम के आधार पर हम इस देश व सारी धरती को स्वर्ग के समान बना सकते हैं.
स्वर्ग बना सकते हैं प्रश्न उत्तर
प्र. १. कवि के अनुसार मनुष्य का जीवन कैसा हो ?
उ . कवि के अनुसार मनुष्य का जीवन बाधा रहित होना चाहिए. उसके जीवन में अन्याय न हो और समान रूप से विकास का अवसर मिले
प्र. २. कवि के अनुसार संघर्ष कब समाप्त होगा ?
उ कवि के अनुसार जब सभी मनुष्यों को समानता की दृष्टि से देखा जाएगा, सभी को बढ़ने का समान अवसर प्राप्त होगा तभी संघर्ष समाप्त होगा.
प्र. ३. मनुष्य किसमें लगा हुआ है ? वह किस भय में हैं ?
उ. मनुष्य भोग और संघर्ष में लगा हुआ है . स्वार्थ के कारण उसमें लालच की भावना होती है और वही उसे खोने का डर भी होता है .
प्र. ४. कवि के अनुसार धरती को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है ?
उ. कवि का कहना है कि धरती पर सभी मनुष्यों का समान अधिकार है . सुख के साधनों को केवल कुछ मनुष्यों का कब्ज़ा ही मनुष्य के दुखों का कारण है. यदि सभी को समान अधिकार मिले और विकास का समान अवसर मिले तो यह धरती अवश्य ही स्वर्ग बन जायेगी.
Reference to Context Question and Answers
प्रश्न कः निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी, हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी । सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण, बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन । लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं, मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं। न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को, चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को ।
(i) कवि ने भूमि के लिए किस शब्द का प्रयोग किया हैं और क्यों?
उत्तर:
कवि ने भूमि के लिए 'क्रीत दासी' शब्द का प्रयोग किया हैं क्योंकि किसी की क्रीत (खरीदी हुई) दासी नहीं है। इस पर सबका समान रूप से अधिकार है।
(ii) धरती पर शांति के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर :
धरती पर शांति के लिए सभी मनुष्य को समान रूप से सुख सुविधाएँ मिलनी आवश्यक है।
(iii) भीष्म पितामह युधिष्ठिर को किस नाम से बुलाते है? क्यों?
उत्तर:
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को 'धर्मराज' नाम से बुलाते है क्योंकि वह सदैव न्याय का पक्ष लेता है और कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देता ।
(iv) शब्दार्थ लिखिए - क्रीत, जन्मना, समीरण, भव, मुक्त, सुलभ ।
उत्तर:
क्रीत: खरीदी हुई
समीरण: वायु
जन्मना: जन्म से मुक्तः स्वतंत्र सुलभ: आसानी से प्राप्त
भवः संसार
प्रश्न 2: निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा, शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा। उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में, लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में। प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर, भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर? सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं; चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
(i) 'प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते।
(ii) मानव का विकास कब संभव होगा?
उत्तर:
कमानव के विकास के पथ पर अनेक प्रकार की मुसीबतें उसकी राह रोके खड़ी रहती है तथा विशाल पर्वत भी राह रोके खड़े रहता है। मनुष्य जब इन सब विपत्तियों को पार कर आगे बढ़ेगा तभी उसका विकास संभव होगा।
(iii) किस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है?
उत्तर:
ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते। सभी लोग सुखी होंगे। इस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है।
(iv) शब्दार्थ लिखिए - शमित, विकीर्ण, कोलाहल, विघ्न, चैन, पल।
उत्तर:
शमित: शांत
विकीर्ण: बिखरे हुए
कोलाहल: शोर
विघ्न: रूकावट
चैन: शांति
पल: क्षण
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