मातृ मंदिर की ओर - सुभद्राकुमारी चौहान Matri Mandir ke aur ICSE Hindi Question Answers
व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश चलूँ उसको बहलाऊँ आज । बताकर अपना सुख-दुख उसे हृदय का भार हटाऊँ आज ।।
चलूँ मां के पद-पंकज पकड़ नयन जल से नहलाऊँ आज । मातृ-मन्दिर में मैंने कहा चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री सुभद्रा कुमार चौहान जी कहती हैं कि उनका ह्रदय व्यथित है .अपने ह्रदय के दुःख को दूर करने के लिए वे माता के मंदिर में जाना चाहती हैं. उनके साथ अपना दुःख साझा करके अपने ह्रदय का बोझ कुछ कम करना चाहती हैं . माता के चरणों को कवयित्री अपने आंसुओं से धोकर अपना दुःख व्यक्त करेगी. इसीलिए वह माता के मंदिर के दर्शन के लिए जाना चाहती हैं.
२. किन्तु यह हुआ अचानक ध्यान दीन हूं, छोटी हूं, अञ्जान! मातृ-मन्दिर का दुर्गम मार्ग तुम्हीं बतला दो हे भगवान !
मार्ग के बाधक पहरेदार सुना है ऊंचे-से सोपान । फिसलते हैं ये दुर्बल पैर चढ़ा दो मुझको यह भगवान !
व्याख्या - सहसा कवयित्री को ध्यान आता है कि वह दीं हीन हैं और माता के मंदिर जाने का मार्ग दुर्गम हैं. इसीलिए माता से प्रार्थना करती हैं वे उसे मंदिर तक पहुँचने का मार्ग दिखला दे . मंदिर के सीढ़ियां बहुत ऊँची ऊँची हैं,रास्ते में बाधक पहरेदार खड़े हैं, जो कवयित्री का मार्ग रोकने के लिए तत्पर हैं . उसके दुर्बल पैर फिसलते हैं . अतः ऐसी स्थिति में माता ही मंदिर तक पहुँचने में सहायता करें.
३. अहा ! वे जगमग जगमग जगी ज्योतियां दीख रहीं हैं वहां । शीघ्रता करो, वाद्य बज उठे भला मैं कैसे जाऊं वहां ?
सुनाई पड़ता है कल-गान मिला दूं मैं भी अपने तान । शीघ्रता करो, मुझे ले चलो मातृ-मन्दिर में हे भगवान!
व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि मंदिर में दूर से ही जग मग जगमग ज्योति दिखाई दे रही हैं, साथ वाद्य यंत्र बज रहे हैं. इसीलिए वह जल्द से जल्द पहुंचना चाहती हैं, लेकिन उसे कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा है. मंदिर में बज रहे गीतों से वह अपनी तान मिलाना चाहती हैं. इसीलिए वह भगवान से प्रार्थना करती हैं कि जल्द से जल्द वह माता के मंदिर में पहुंचे.
४.चलूं मैं जल्दी से बढ़ चलूं
देख लूं मां की प्यारी मूर्ति ।
अहा ! वह मीठी-सी मुसकान जगाती होगी न्यारी स्फूर्ति ।। उसे भी आती होगी याद उसे ? हां, आती होगी याद । नहीं तो रूरूंगी मैं आज सुनाऊँगी उसको फरियाद ।।
व्याख्या - कवयित्री जल्द से जल्द माता की प्यारी मूर्ति देख लेना चाहती हैं. प्यारी मूर्ति को देखकर उनमे एक अनोखी स्फूर्ति आ जाती है . जिस तरह कवयित्री माँ को याद करती हैं, उसी तरह माँ भी उसे याद करती होंगी. यदि माता कवयित्री को याद नहीं करती हैं, तो वह उनसे रूठ जायेंगी और अपनी फ़रियाद करेंगी .
५. कलेजा मां का, मैं सन्तान, करेगी दोषों पर अभिमान । मातृ-वेदी पर घण्टा बजा, चढ़ा दो मुझको हे भगवान् !!
व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि मैं जैसे भी हूँ , जितने भी दोष मेरे अन्दर होंगे, माता सभी दोष माफ़ कर देंगी. वह कुमाता नहीं हो सकती हैं . माता की रक्षा के लिए मातृ-वेदी का घंटा बजा है ,इसीलिए मैं उनकी रक्षा के लिए अपना बलिदान कर दूँगी .
6. सुनूँगी माता की आवाज, रहूँगी मरने को तैयार। कभी भी उस वेदी पर देव ! न होने दूँगी अत्याचार।।
न होने दूँगी अत्याचार चलो, मैं हो जाऊँ बलिदान मातृ-मन्दिर में हुई पुकार चढ़ा दो मुझको हे भगवान् ।
व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि वह भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तत्पर हैं . माता पर कभी भी अत्याचार नहीं होने देंगी. अपना माता का अपमान व अत्याचार नहीं होने देंगी, चाहे उन्हें अपने जीवन को न्योछावर करना ही पड़े. जब भी भारत माता की रक्षा के लिए पुकार हो, तब वह अपना आत्म - बलिदान करने को तत्पर हैं.
मातृ मंदिर की ओर कविता का सार Summary of matri mandir ki aur
मातृ मंदिर की ओर कविता सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है. प्रस्तुत कविता में आपने अपने दुःख को कम करने के लिए उसका उपाय बताया है. इसीलिए वह इस दुःख को कम करने के लिए भारत माता के मंदिर में जाकर उनके चरणों पर सर रखकर जी भर का रोना चाहती है. जिससे उसका मन हल्का हो सकेगा .मंदिर दूर व दुर्गम स्थान पर है . जहाँ जाना मुश्किल है व मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं अतः वह भगवान् से प्रार्थना करती है कि हे भगवान ! मुझे उस मंदिर तक शीघ्र ले चलो जहाँ मैं उस महिमामयी माँ के दर्शन करना चाहती हूँ . जिस प्रकार मैं उन्हें याद कर रही हूँ वैसे ही उन्हें भी मेरी याद आ रही है. अतः मेरे भारत माता से प्रार्थना है कि वे मेरी माँ है और मैं उनकी संतान हूँ ईश्वर, भारत माता पर होने वाले अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए कवयित्री को शक्ति दें कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति आने वाली किसी भी प्रकार की बाधाओं को पार कर सके .
सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित मातृ मंदिर की ओर कविता देशभक्ति से ओतप्रोत मार्मिक रचना है . आशा निराशा के झूले में झूलती कवयित्री अत्यंत दुखी है . कवयित्री अपन मन को शांत करने के लिए भारत माता के मंदिर जाकर उनके दर्शन करना चाहती है उनके कमल रूपी चरणों को अपने अश्रु जल से धोना चाहती है . कवयित्री कहती है कि वे माता की एक आवाज पर अपना सम्पूर्ण जीवन बलिदान कर सकती है. माता विदेशी शासकों के अत्याचारों से दुखी है . अतः वह मातृभूमि की स्वतंत्रता से लिए अपना जीवन बलिदान कर देंगी
मातृ मंदिर की ओर उद्देश्य
मातृ मंदिर की ओर कविता सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है मातृ मंदिर की ओर कविता का मुख्य उद्देश्य जन जन में देश भक्ति की भावना को जाग्रत करना है .सच्चा देशभक्त वही होता है जो अपनी मातृभूमि पर हो रहे अत्याचार से व्याकुल हो जाता है कि वह किसी भी रूप में किसी भी प्रकार से अपनी भारत माता के दुखों को दूर करेगा . ऐसे देशभक्त को देशभक्ति के मार्ग में आई बाधाओं को किसी भी प्रकार दूर करना चाहते हैं . कवयित्री अपनी माँ की मूर्ति को देखने के लिए आकुल है. वह भारत माँ के चरणों में अपना जीवन समर्पित करना चाहती है. अतः हम कह सकते हैं कि देशवासियों में देशभक्ति के भाव जगाना व उन्हें भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अपने जीवन की बाज़ी लगाने के लिए उन्हें प्रेरित करना कविता का मुख्य उद्देश्य है .
प्रश्न उत्तर
प्र.१ कवयित्री का ह्रदय क्यों दुखी है ?
उ. कवयित्री देश की दशा के बारे में सोचकर दुखी है. वह भारत की परतंत्रता को देख कर , देश वासियों पर हो रहे अत्याचार, समाज में व्याप्त भेद भाव को देखकर दुखी है. वह भारत माता के मंदिर में जाकर अपनी व्यथा कम करना चाहती है .
प्र.२ कवयित्री ने किस बात का संकल्प किया और वह उसे किस प्रकार पूरा करेगी ?
उ. कवयित्री ने इस बात का संकल्प किया हुआ है कि वह भारत माता के मंदिर में जाकर दर्शन करेगी. वह माता को अपने देश वासियों की दीन अवस्था को सुधारने के लिए प्रार्थना करेगी.
प्र. ३ कवयित्री के मार्ग में कौन बाधक है
उ. कवयित्री भारत माता के मंदिर में जान चाहती है, लेकिन मार्ग में खड़े पहरेदार उसे रोक रहे है . रास्ते की सीढ़ियाँ बहुत ऊँची है . इन सब बाधाओं को पारकर कवयित्री माता के मंदिर टक पहुँचना चाहती है .
प्र.४ माता का स्वरुप कैसा है ?
उ. कवयित्री भारत माता के मंदिर के दर्शन करना चाहती है . माता की मूर्ति बहुत ही सुन्दर और मुस्कान लिए हुए है . इसीलिए कवयित्री इस रूप का दर्शन करना चाहती है .
उ. कवयित्री कहती हैं कि माता की मूर्ति बहुत प्यारी और अनोखी हैं उनकी मधुर मुस्कान को देखकर उनके ह्रदय में एक अनोखी स्फूर्ति आ जाती है .
प्र. ६. प्रस्तुत कविता में कवयित्री भगवान् से शीघ्रता करने को क्यों कहती हैं ?
उ. कवयित्री भगवान् से शीघ्रता करने को इसीलिए कहती हैं क्योंकि वह माता का दर्शन करने को उत्सुक है. वह मातृभूमि की झलक पाने के लिए व्याकुल है .इसीलिए भगवान् से कहती हैं कि उसे माता के मंदिर में जल्द से जल्द पहुँचा दें
प्र. ७. कवयित्री किसमें तान मिलाना चाहती हैं और क्यों ?
उ - कवयित्री को दूर से ही माता के मंदिर से आते गीतों की आवाज सुनाई दे रही हैं, जिसके कारण उसका ह्रदय लालायित हो उठा है . इसीलिए माता की प्रशंसा में वह गीत गाना चाहती हैं, जिससे माता की भक्ति हो सके .
अवतरणों पर आधारित प्रश्न
1. व्यथित है मेरा हृदय प्रदेश, चलूँ, उसको बहलाऊँ आज। बताकर अपना सुख-दुख उसे हृदय का भार हटाऊँ आज । चलूँ माँ के पद पंकज पकड़ नयन जल से नहलाऊँ आज। मातृ-मंदिर में मैंने कहा..... चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ॥
(क) कविता की रचयित्री कौन हैं ? ये पंक्तियाँ उनकी किस कविता से ली गई हैं ? उसके हृदय के व्यथित होने का क्या कारण है ?
उत्तर : कविता की रचयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। ये पंक्तियाँ उनकी 'मातृ मंदिर की ओर' कविता से ली गई हैं। उनका हृदय इसलिए व्यथित है क्योंकि भारत माँ पराधीन है। कवयित्री ने भारत की पराधीनता को लेकर अपने मन की पीड़ा अभिव्यक्त की है।
(ख) कवयित्री ने अपने मन को बहलाने का कौन सा उपाय ढूँढ़ा ?
उत्तर : कवयित्री कहती है कि उसके हृदय में पीड़ा है। वह मातृ मंदिर में जाकर भारत माँ को अपना सुख-दुख सुनाकर अपने चित्त को हल्का करना चाहती है।
(ग) 'चलूँ माँ के पद पंकज पकड़ नयन जल से नहलाऊँ आज -पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर : कवयित्री की इच्छा है कि वह मातृभूमि जैसे पवित्र मंदिर में माँ के कमल के समान चरणों को अपने अश्रु जल से धोए और उन चरणों को पकड़कर अपना दर्द रो-रोकर सुनाए । वह मातृ मंदिर के दर्शन करके अपने मन को हल्का करना चाहती है।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवयित्री क्या प्रेरणा दे रही है ?
उत्तर : कवयित्री भारत माँ की पराधीनता के कारण दुखी है। अनेक बलिदानों के बाद भी भारत को पराधीनता से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। इसलिए वह भारत माता को अपने सुख-दुख का साझीदार बनाना चाहती है तथा उसके चरणों को पकड़कर आँसू बहाकर अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहती है।
2. किंतु यह हुआ अचानक ध्यानदीन हूँ, छोटी हूँ, अज्ञान । मातृ-मंदिर का दुर्गम मार्ग तुम्हीं बतला दो हे भगवान । मार्ग के बाधक पहरेदार सुना है ऊँचे-से सोपान । फिसलते हैं ये दुर्बल पैर चढ़ा दो मुझको हे भगवान ।
(क) कवयित्री को अचानक क्या ध्यान आया ? उसने भगवान से क्या प्रार्थना की ?
उत्तर : कवयित्री की इच्छा है कि वह भारत माता के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करे, उन्हें अपना दुख-दर्द सुनाकर अपने मन को हल्का करे, परंतु तभी उसे अपनी दुर्बलता तथा छोटेपन का अहसास होता है। वह सोचती है कि मैं दीन, छोटी तथा ज्ञान से रहित हूँ, साथ ही भारत माता के मंदिर तक पहुँचने का मार्ग भी अत्यंत दुर्गम है। वहाँ आसानी से पहुँचा नहीं जा सकता, इसलिए कवयित्री भगवान से प्रार्थना करती है कि वे उसे वहाँ तक पहुँचाने का मार्ग बताएँ ।
(ख) 'मार्ग के बाधक पहरेदार' से कवयित्री का क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवयित्री मातृ मंदिर में प्रवेश चाहती है, परंतु वहाँ तक पहुँचने के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ हैं । मार्ग में अनेक पहरेदार (विदेशी शासक) हैं, जो हर समय पहरा देते रहते हैं, जिसके कारण वहाँ पहुँचना कठिन है।
(ग) कवयित्री ने मातृ मंदिर के मार्ग को दुर्गम क्यों कहा है ? वह भगवान से क्या प्रार्थना करती है ?
उत्तर : कवयित्री ने मातृ मंदिर के मार्ग को दुर्गम इसलिए कहा है क्योंकि मार्ग में विदेशी शासक रूपी अनेक पहरेदार हैं, जो हर समय बाधा उपस्थित करते है, इसलिए वहाँ पहुँचना कठिन है। कवयित्री कहती है कि उसके दुर्बल पैर फिसल रहे हैं। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे भगवान! अब केवल तुम्हीं मेरी सहायता कर सकते हो। मुझे मातृ मंदिर की ऊँची-ऊँची सीढ़ियों पर चढ़ने की शक्ति प्रदान करो।
(घ) शब्दार्थ लिखिए
उत्तर :
दीन- गरीब
दुर्गम - जहाँ पहुँचना कठिन हो
बाधक - बाधा डालने वाला, रोकने वाला
दुर्गम - जहाँ पहुँचना कठिन हो
बाधक - बाधा डालने वाला, रोकने वाला
3. अहा! वे जगमग जगमग जगी ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ । शीघ्रता करो, वाद्य बज उठे भला मैं कैसे जाऊँ वहाँ ? सुनाई पड़ता है कल-गान मिला हूँ मैं भी अपनी तान। शीघ्रता करो मुझे ले चलो, मातृ मंदिर में हे भगवान ॥
(क) 'ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ' पंक्ति द्वारा कवयित्री का संकेत किस ओर है ?
उत्तर : कवयित्री का संकेत स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियों से है। कवयित्री कहती हैं कि यद्यपि भारत माता का मंदिर दूर है, पर इतना भी दूर नहीं है कि वहाँ का जगमगाता दृश्य दिखाई न दे। कवयित्री को स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियाँ दिखाई दे रही है।
(ख) 'वाद्य बज उठे' से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ? उनकी ध्वनि सुनकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर : कवयित्री को स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियाँ तथा वहाँ बजने वाले वाद्य भी सुनाई दे रहे हैं वह मातृ मंदिर से आने वाले दिव्य और पवित्र संगीत को भी सुनती है इसलिए वह वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँचना चाहती है। उत्तर: ।
(ग) 'कल गान' से कवयित्री का क्या आशय है ? इस संदर्भ में कवयित्री अपनी क्या अभिलाषा व्यक्त करती है ?
उत्तर: 'कल-गान' से कवयित्री का तात्पर्य सुंदर, दिव्य और पवित्र संगीत से है। कवयित्री वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँचकर वहाँ होने वाले गायन में अपनी तान भी मिला देना चाहती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि वे शीघ्रता से उसे मातृ मंदिर तक पहुँचा दे।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का मूलभाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : कवयित्री को एहसास हो रहा है कि भारत की स्वतंत्रता अब दूर नहीं है। इसलिए वह कहती है कि वहाँ का जगमगाता दृश्य उसे दिखाई दे रहा है, अर्थात् स्वाधीनता प्राप्ति होने में अधिक देर नहीं है, इसलिए वह चाहती है कि भगवान उसे जल्दी से अपने लक्ष्य तक पहुँचा दे, जिससे कि वह भी स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना योगदान दे सके।
4. चलूँ मैं जल्दी से बढ़ चलूँ। देख लूँ माँ की प्यारी मूर्ति । अहा ! वह मीठी सी मुसकान जगा जाती है, न्यारी स्फूर्ति। उसे भी आती होगी याद ? उसे, हाँ आती होगी याद । नहीं तो रूलूंगी मैं आज सुनाऊँगी उसको फरियाद।
(क) उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवयित्री की क्या इच्छा है ?
उत्तर : कवयित्री को लगता है कि मातृ-मंदिर में जगमगाते दीपकों की लौ अपना प्रकाश बिखेर रही है। वह मातृ मंदिर से आने वाले दिव्य एवं पवित्र संगीत को भी सुनती है, इसलिए वह जल्दी से जल्दी मातृभूमि के चरणों में पहुँचकर भारत माँ की प्यारी मूर्ति को देखना चाहती है।
(ख) 'मीठी-सी मुसकान का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : मातृभूमि की मूर्ति अत्यंत दिव्य है। उसकी मुस्कान इतनी सुंदर है कि उसे देखते ही शरीर में नई स्फूर्ति का समावेश हो जाता है। भारत माँ के मुख पर मीठी-सी मुस्कान देखकर उसके हृदय में भी नई स्फूर्ति का संचार होगा।
(ग) 'जगा जाती है, न्यारी स्फूर्ति' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : भारत माँ की अलौकिक और दिव्य मूर्ति पर मीठी-सी मुस्कान को देखकर कवयित्री के शरीर में एक नई स्फूर्ति का समावेश हो जाता है। उत्तर:
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
उत्तर : कवयित्री भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने को तत्पर है, उसकी इच्छा है कि भारत शीघ्रता से विदेशी शासन से मुक्त हो और वह भारत माँ को मुसकराता हुआ देख सके। भारत माँ के मुख पर मुसकान देखकर उसे भी नई स्फूर्ति प्राप्त होगी, उसमें नया जोश एवं नई उमंग आ जाएगी । पुस्तिका - साहित्य सागर
5. कलेजा माँ का, मैं संतान करेगा दोषों पर अभिमान। मातृ-६ -वेदी पर हुई पुकार, चढ़ा दो मुझको, हे भगवान ।। सुनूँगी माता की आवाज़ रहूँगी मरने को तैयार। कभी भी उस वेदी पर देव, न होने दूंगी अत्याचार॥ न होने दूंगी अत्याचार चलो, मैं हो जाऊँ बलिदान । मातृ-मंदिर में हुई पुकार, चढ़ा दो मुझको, हे भगवान ।।
(क) उपर्युक्त पंक्तियों में 'माँ' की किस विशेषता का उल्लेख किया गया है और क्यों ?
उत्तर : कवयित्री कहती है कि माता के हृदय में अपनी संतान के प्रति ममता, स्नेह तथा वात्सल्य के भाव भरे होते हैं। माँ के हृदय की यह विशेषता होती है कि वह अपने बच्चों के दोषों को क्षमा कर देती है। अपने बच्चे के दोषों को देखकर भी उसके हृदय में बच्चों के लिए प्यार कम नहीं होता, बल्कि संतान के प्रति गर्व का भाव होता है।
(ख) 'मातृ- वेदी पर हुई पुकार' - का संदर्भ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : मातृ-वेदी अर्थात् मातृभूमि पर पुकार हुई है, इसलिए कवयित्री अपना बलिदान देना चाहती है और भारत माँ को पराधीनता से मुक्त करना चाहती है।
(ग) कौन किस पर तथा किस प्रकार अत्याचार कर रहा था ? अत्याचार के विरोध में कवयित्री अपनी क्या इच्छा व्यक्त करती है ?
उत्तर : मातृभूमि पर विदेशी शासक अत्याचार कर रहे हैं। ये शासक अत्यंत शक्तिशाली हैं, जिनसे टक्कर लेना आसान नहीं है, फिर भी कवयित्री उनसे टकराने का संकल्प करती है। कवयित्री की इच्छा है कि वह मातृ वेदी पर कभी अत्याचार नहीं होने देगी। इन अत्याचारों को रोकने के लिए यदि उसे अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े, तो वह सहर्ष ऐसा करेगी। वह भगवान से प्रार्थना करती है कि वह उसे मातृमंदिर की पुकार पर आत्मोत्सर्ग करने की शक्ति प्रदान करे।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवयित्री क्या प्रेरणा दे रही है ?
उत्तर : उपर्युक्त पंक्तियों में कवयित्री ने माँ के स्वभाव की विशेषताओं की चर्चा करते हुए कहा है कि माता कभी कुमाता नहीं होती। वह अपनी संतान के दोषों को भी अनदेखा कर देती है। कवयित्री की इच्छा है कि वह अपनी मातृभूमि पर होने वाले अत्याचारों को देखकर नहीं बैठेगी और किसी प्रकार के अत्याचार नहीं होने देगी। अत्याचारों को रोकने के लिए वह अपने प्राणों का बलिदान करने को भी तत्पर है 1
Check out more resources (Click on the links alongside the topics):-
Comments
Post a Comment
This site is all about helping you kids study smart because for Gen Z, studying "hard" is not enough. If you feel there is any way I could improve my posts or if you have any random suggestion that might help make this more kid friendly, please don't hesitate to drop in a comment!
Be sure to check back for my response if you've asked me a question or requested a clarification through the comment section because I do make every effort to reply to your comments here.